लेखिका -प्रीता जैन
अपनी पहचान खुद बनाएं
कुछेक प्रयास से अपनी विशिष्टता और प्रभाव बरकरार रखने में सफल हो सकते हैं:
– मातापिता या बुजुर्गों के अलावा किसी के भी सामने बच्चे अथवा बेचारे बनने से बचें.
– हर किसी के सामने अपनी छवि अनभिज्ञ व असहाय न होने दें. यदि आप स्वनिर्भर व सक्षम हैं तो अन्य व्यक्ति के सलाह देने पर ‘न’ कहना सीखें और न ही दूसरे को बातबात पर सलाह देते रहें.
– यदि कुछ सम झ नहीं आए तभी दूसरे की सलाह लें और अमल करें, बातबात पर सदैव ऐसा न होने दें. स्वच्छ छवि ऐसी हो कि आप की उम्र व बड़प्पन झलके ताकि हरकोई आतेजाते आप को नासम झ मानने की भूल न करे.
– स्वयं पर भरोसा व आत्मविश्वास रखते हुए जिंदगी के साथ कदम दर कदम बनाते हुए आगे बढ़ें, खुदबखुद रास्ते निकलेंगे मंजिल मिलेगी. जिंदगी आप की अपनी मरजी से जीएं, छोटेबड़े फैसले खुद करें. दूसरे का हस्तक्षेप न होने दें. यदि आवश्यकता महसूस हो तब कभीकभार दूसरों की राय ली जा सकती है, किंतु सुनें सब की करें मन की.
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– बेवजह औरों की राय ले कर स्वयं के आत्मसम्मान व आत्मविश्वास को कम न होने दें. इसी में आप का हित है, अच्छाई है.
सु चि अपने लिए लोकल मार्केट से ड्रैस ले ही रही थी कि अचानक उसे पीछे से किसी ने आवाज दी. सुचि ने पलट कर देखा तो रीमा थी. रीमा को अचानक वहां
देख कर सुचि का मूड औफ हो गया, क्योंकि उसे पता था कि अब वह जबरदस्ती उसे सही ड्रैस चुनने के टिप्स देने लगेगी जैसे खुद बड़ी फैशन की ज्ञानी हो. यह कैसा ले लिया, यह तो अब ट्रैंड में भी नहीं इत्यादि बताबता कर सिर खा जाएगी. खैर दोस्त थी तो मुंह पर मना भी नहीं कर सकती थी.
ध्यान से आना, ट्रेन में खानेपीने का सामान अच्छी तरह रख लेना, 1-2 बोतलें पानी की रखना, कहीं भी स्टेशन पर मत उतरना, दिल्ली तो हम मिल ही जाएंगे. कोई चिंता मत करना.
ये हिदायतें किसी बच्चे के लिए न हो कर 45 साल की विनीता के लिए थीं, जो अपने मायके अकेली जा रही थीं. बड़े भैया अपनी तरफ से तो उन के भले के लिए ही कह रहे थे पर विनीता को सुनसुन कर कभी हंसी आती कि कैसे बच्चों की तरह हमेशा सम झाते रहते हैं तो कभी खीज भी आने लगती, जब बच्चे तक उस की तरफ देखदेख मुसकराने लगते या फिर पति उसे बेचारी सम झ खुद भी सम झाने लगते.
यह सिर्फ एक दिन की बात न हो कर रोज की है- जब भी भैया या भाभी का फोन आता इधरउधर की बातें न कर विनीता को सम झाते कि ऐसा किया कर वैसा किया कर. यह करना वह मत करना, यहां जाना वहां मत जाना, यह सामान लेना वह न खरीदना बगैराबगैरा.
इसी तरह दीपा की जेठानी रीना जो उस से 1-2 साल ही बड़ी है वह भी आज उसे बच्चों की परवरिश के बारे में बता रही थी. सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि जब भी उस का फोन आता किसी न किसी बात पर सम झाना शुरू कर देती कि सुबह जल्दी उठा कर, नाश्ते या खाने में यह बनाया कर, घर को ऐसे सजाया कर, यह काम ऐसे किया जाता है, वह काम वैसे किया जाता है, सब के साथ ऐसा व्यवहार रख वैसा न रख वगैरावगैरा.
यह उचित नहीं
शुरूशुरू में तो विनीता सुनती रहती पर अब उसे भी लगता कि हमउम्र ही तो है. यदि और भी इधरउधर की पढ़ाई या मनोरंजन की बातें हों तो ज्यादा अच्छा किंतु ऐसा होता कहां है? वह सुनाती रहती विनीता सुनती रहती, कभी न बता पाती या उस की बातों से आभास नहीं होता कि वह भी एक सुघड़ गृहिणी या महिला है, जो अपने फर्ज जिम्मेदारी निभाना बखूबी जानती है शायद उस से भी ज्यादा.
ऐसा सिर्फ विनीता ही नहीं वरन हम में से अधिकतर के साथ होता है, कई दफा बचपन से पचपन तक सभी से अपने लिए कुछ न कुछ सुननेसम झने की आदत हमारे स्वभाव में विकसित होती जाती है और धीरेधीरे हम सुनने के लिए न नहीं कर पाते. जो जैसा कहता जाता है स्वयं अच्छा न महसूस करते हुए भी सुनसुन कर सिर हिलाने लगते हैं जैसे सम झने की कोशिश की जा रही है. इसीलिए हरकोई नासम झ और बेचारा मान अपनी सलाह बारबार देने ही लगता है और फिर जब भी बातचीत होती है ऐसा ही होता रहता है.
किंतु यह उचित नहीं है. न तो हर वक्त किसी को सलाह देते रहना न ही हर समय औरों की सलाह को मानना. जीवन है तो जीने के लिए हरेक व्यक्ति जरूरतानुसार व्यक्तिगत कार्य करता ही है. अधिकतर लोग उम्र के साथसाथ इतने सम झदार व परिपक्व हो ही जाते हैं कि अपने कार्यों को भलीभांति कर सकें, किसी पर बेवजह निर्भर न रहना पड़े. अहम बात है कि किसी कार्य के बारे में जानना या कोई जानकारी लेनी हो तभी अन्य व्यक्ति से पूछना चाहिए अथवा सलाह लेनी चाहिए. इसी तरह अपनी तरफ से भी दूसरे व्यक्ति को बेवजह न बताते हुए तभी राय देनी चाहिए जब वह खुद लेना चाहे या आवश्यकतानुसार सलाह देने की जरूरत महसूस की जा रही हो.
सही सलाह
सलाह देने वाले से ज्यादा गलती उस व्यक्ति की है जो दूसरे की हिदायतें सुनता रहता है व इस तरह का व्यवहार करता है जैसे नासम झ है, अनजान है. यह भी नहीं कहा जा रहा कि अन्य व्यक्ति की सलाह सुननी या माननी नहीं चाहिए, बल्कि कहने का तात्पर्य यह है कि वही सलाह मानें जो वास्तव में मानने लायक हो, जिस से आप की रोजमर्रा की जिंदगी या फिर जीवन में नई दिशा मिले अथवा जिस के सुनने या अमल करने पर मानसिक शांतिसंतुष्टि मिलने की संभावना हो अन्यथा ‘न’ सुनने तथा ‘न’ कहने की आदत खुद में विकसित करना बेहद आवश्यक है.
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हर सख्स का व्यवहार व आदतें अलगअलग होती हैं. कुछ अच्छी तो कुछ हमारे व्यक्तित्व के विकास में बाधक भी होने लगती हैं. उदाहरण के लिए- यदि हम आपसी सम झ न रख औरों का जरूरत से ज्यादा अपनी निजी जिंदगी में हस्तक्षेप कराने लगते हैं तो प्रभावहीन व श्रेष्ठहीन व्यक्तित्व के हो कर रह जाते हैं, स्वयं की पहचान खोने लगते हैं.
जीवन में बहुत कुछ हम जानतेसम झते बड़े होते रहते हैं. अनुभव व समय सब को दुनियादारी सिखा ही देते हैं. फिर भी मातापिता या अपने से बड़ों की सलाह तथा उन की कही बातें भलीभांति ध्यान से सुन उन पर अमल करना चाहिए, हमउम्र या सिर्फ 2-4 साल ही बड़ों की जबतब सुनना उचित नहीं माना जाता. इस से आप का व्यक्तित्व कमजोर व प्रभावहीन होता जाता है. अत: बेवजह की सलाह या टोकाटाकी से बचें और अपनी छवि आकर्षक व प्रभावशाली बनाए रखें.