प्रैगनैंसी रोकने के लिए गर्भनिरोधक कितना फायदेमंद है?

सवाल-

मैं 24 साल की हूं. मेरे विवाह को 2 महीने हुए हैं. प्रैगनैंसी से बचे रहने के लिए कौपर टी, कंडोम और डायाफ्राम में से कौन सा गर्भनिरोधक मेरे लिए सब से अच्छा रहेगा और ये गर्भनिरोधक कितनेकितने साल तक प्रैगनैंसी रोकने के लिए अपनाए जा सकते हैं, कृपया विस्तार से जानकारी दें?

जवाब-

प्रत्येक गर्भनिरोधक विधि के अपने लाभ और अपनी सीमाएं हैं, जिन के बारे में पूरी जानकारी पा कर आप सही फैसला ले सकती हैं. कौपर टी उन स्त्रियों के लिए उपयुक्त गर्भनिरोधक है, जो कम से कम 1 बार संतान धारण कर चुकी होती हैं. नवविवाहिताओं के लिए कौपर टी ठीक नहीं, क्योंकि इसे लगाने पर पैल्विस में सूजन होने का डर रहता है और आगे चल कर प्रैगनैंट होने में भी परेशानी हो सकती है. इस का इस्तेमाल 2 बच्चों के बीच फासला रखने के लिए ही किया जाना चाहिए.

नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी स्त्रियां, जिन्हें पहले से पैल्विस का इन्फैक्शन हो, मासिकस्राव ज्यादा या अनियमित हो, पेड़ू में दर्द रहता हो, गर्भाशय की रसौली हो, गर्भाशयग्रीवा की सूजन हो, ऐनीमिया हो या पहले कभी ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी हुई हो, उन के लिए भी कौपर टी का इस्तेमाल ठीक नहीं. कंडोम गर्भनिरोध का आसान और सुलभ तरीका है. इस के इस्तेमाल से पहले डाक्टर की सलाह लेना भी जरूरी नहीं. इस के कामयाब बने रहने के लिए सिर्फ इस का सही इस्तेमाल आना जरूरी है. असावधानी बरतने पर सैक्स के दौरान कंडोम के फिसल जाने या फट जाने पर परेशानी खड़ी हो सकती है. डायाफ्राम के साथ भी कंडोम जैसी ही समस्याएं हैं और इस का फेल्यर रेट भी काफी है.

नवविवाहिताओं के लिए सुरक्षा का एक और अच्छा उपाय ओरल कौंट्रासैप्टिक पिल्स हैं. इन्हें लेने से कामसुख में किसी तरह का विघ्न नहीं पड़ता और पूरीपूरी सुरक्षा भी मिलती है. लेकिन इन्हें शुरू करने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. यदि डाक्टर इजाजत दे, तो इन्हें लगातार 3 साल तक ले सकती हैं. रोज 1 गोली लेनी होती है. प्रैगनैंसी का मन बने तो गोली लेना बंद करने के 1 से 3 महीनों के बाद दोबारा प्रजनन क्षमता पहले जैसी हो जाती है और प्रैगनैंसी में कोई दिक्कत नहीं आती.

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अनचाही Pregnancy से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है. गर्भपात कराने से बेहतर है कि अनचाहा गर्भ ठहरने ही न पाए. इस से स्त्रीपुरुष को आर्थिक, सामाजिक व मानसिक रूप से सुकून मिलता है. अनचाहे गर्भ से कैसे बचें? कौन सा गर्भनिरोधक कितना प्रभावी है और क्यों? इस तरह के कई सवाल महिलाओं के जेहन में उठते हैं और इस का सही जवाब उन्हें समय से ज्ञात नहीं हो पाता. सामान्यत: निम्न सवालों का जवाब अधिकांश महिलाएं अवश्य जानना चाहेंगी :

स्त्री कंडोम क्या है?

स्त्री कंडोम एक पतले रबर का बना होता है. इस का बंद सिरा गर्भाशय ग्रीवा को ढक देता है और दूसरा खुला सिरा बाहर रहता है. इसे संबंध बनाने से ले कर 8 घंटे तक धारण किया जा सकता है परंतु सेक्स के बाद लगाने पर इस का कोई उपयोग नहीं रहता है. यह 79.95% सुरक्षा प्रदान करता है.

क्या स्त्री व पुरुष दोनों को कंडोम इस्तेमाल करना चाहिए?

नहीं, इस की आवश्यकता नहीं है, न ही करना चाहिए.

क्या स्त्री कंडोम के साथ जैली लगानी चाहिए?

स्त्री कंडोम में जैली लगी रहती है. इसलिए किसी प्रकार की लुब्रिकेटिंग जैली की जरूरत नहीं होती है, परंतु आवश्यकतानुसार के-वाई जैली या ल्यूबिक जैली इस्तेमाल की जा सकती है. सही तरीके से विधिवत इस्तेमाल करने पर यह 95% सुरक्षित है.

क्या इस के कोई दुष्प्रभाव हैं?

स्त्री कंडोम के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं. गर्भनिरोधक के साथसाथ यह एचआईवी, एड्स व गुप्त रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है. स्त्री को शुरूशुरू में इसे इस्तेमाल करने में थोड़ी परेशानी व उलझन हो सकती है.

यह कहां उपलब्ध है?

दवा की दुकानों या सुपर बाजार में उपलब्ध है.

गर्भाशय के अंदर लगाए जाने वाली डिवाइस (कौपर टी, मल्टीलोड व मरीना) क्या है?

इन्हें डाक्टरी जांच के बाद डाक्टर द्वारा लगाया जाता है. यह 3, 5 व 10 साल तक प्रभावी होता है. यह अपनी जगह पर ठीक है या नहीं, गर्भाशय ग्रीवा के बाहर लटकते पतले धागे से ज्ञात किया जा सकता है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस के क्या लाभ हैं?

यह बिना किसी बेहोशी या आपरेशन के गर्भाशय में डाक्टर द्वारा लगाया जा सकता है.

यह संभोग क्रिया में किसी प्रकार की बाधा नहीं डालता है. डाक्टर इसे स्त्री के इच्छानुसार बिना किसी सूई अथवा बेहोशी के सरलतापूर्वक निकाल सकता है.

निकालने के तुरंत बाद शीघ्र ही गर्भ ठहरने की संभावना रहती है, क्योंकि यह मासिकधर्म चक्र पर कोई परिवर्तन नहीं होने देता है.

इसे गर्भाशय में लगाने में केवल 10 मिनट लगते हैं और तुरंत ही यह प्रभावकारी हो जाता है. यह लगभग 99% सुरक्षा प्रदान करता है.

आई.यू.एस. मरीना माहवारी में अधिक रक्तस्राव को कम करता है. यह गर्भाशय की छोटी रसौली (फायब्रायड) को भी बढ़ने से रोकता है, जिस से भविष्य में गर्भाशय निकालने जैसे बड़े आपरेशन की नौबत नहीं आती है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस से क्या फायदे नहीं हैं?

गुप्तरोग, एचआईवी व एड्स जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं होती है. माहवारी अनियमित हो सकती है. कभीकभी यह खिसक कर अपनी जगह से नीचे आ जाता है, जिस से गर्भ ठहरने का खतरा हो सकता है, विशेषत: यदि माहवारी में टैंपून का इस्तेमाल किया जाए. कभीकभी गर्भाशय में सूजन, सफेद पानी का स्राव, पीठ में दर्द जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली क्या है और यह किस प्रकार गर्भाधारण को रोकती है?

गर्भनिरोधक खाने की गोली सब से अधिक प्रचलित है. सही तरीके से लिए जाने पर यह अत्यधिक प्रभावी है और साधारणत: इस का कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है. इन गोलियों में वही हारमोंस होते हैं, जो अंडाशय बनाते हैं. इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टरोन या केवल प्रोजस्टरोन, जिन्हें मिनी पिल कहा जाता है. यह गोली प्रत्येक माह अंडाशय से अंडा बनने की प्रक्रिया को रोकती है, जिस से अंडा नहीं बनता है और इस प्रकार माहवारी तो प्रतिमाह अपने समय पर आती है परंतु गर्भ नहीं ठहरने पाता है. मिनी पिल गर्भ ग्रीवा से स्रावित द्रव को गाढ़ा करती है, जिस से शुक्राणु गर्भ के अंदर नहीं पहुंच पाते और इस प्रकार गर्भाधारण नहीं होता है.

बाजार में कितने प्रकार की गोलियां उपलब्ध हैं?

स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह ही सर्वोत्तम है कि कौन सी गोली का सेवन किया जाए. भारत में विभिन्न प्रकार की गर्भनिरोधक गोलियां उपलब्ध हैं- माला डी, ट्राईक्यूलार, ओवेराल-एल, लोएट्, नोवेलोन, फेमिलोन, डायन्, यासमीन इत्यादि.

क्या गर्भनिरोधक गोली के दुष्प्रभाव भी हैं?

अधिकांश महिलाओं पर इस का कोई कुप्रभाव नहीं होता है. कुछ महिलाओं को थोड़ीबहुत परेशानी होती है, जो 3-4 माह गोली का सेवन करने पर स्वत: दूर हो जाती है. अधिकांश महिलाओं को छाती में दर्द व भारीपन, उलटी व मिचली होती है. कभीकभी गोली से चेहरे पर झाइंयां पड़ जाती हैं. कभीकभी महिला को 2 माहवारियों के बीच में भी रक्तस्राव हो जाता है. यदि रक्तस्राव ज्यादा हो तो स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है. गर्भनिरोधक गोली का महिला के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव इस के फायदों की तुलना में लेशमात्र है. अनचाहा गर्भ व एबार्शन का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली का सेवन क्यों करें, इस के क्या फायदे हैं?

नवदंपती के लिए गर्भाधारण को स्थगित करने का सुरक्षित एवं सरल उपाय है- गर्भनिरोधक गोली. इस के अलावा भी इन गोलियों के अनेक फायदे हैं. यह गोली 20 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में मासिक अनियमितताओं एवं कम रक्तस्राव को नियमित करती हैं. इस से चेहरे पर मुंहासों में कमी, चेहरे की कांति का बढ़ना एवं चेहरे पर अनचाहे बालों के उगने पर भी रोकथाम होती है. गर्भनिरोधक गोली भारी माहवारी एवं असहनीय दर्द को भी कम करती है, यदि दर्द का कोई विशेष कारण न हो. यह अंडाशय एवं स्तनों में पानी की रसौली (सिस्ट) को बनने से रोकती है. यह माहवारी पूर्व के दुष्प्रभाव जैसे-पेट में दर्द, स्तनों में भारीपन व दर्द, शरीर का फूलना, मितली जैसी परेशानी का भी निवारण करती है.

यह विभिन्न प्रकार के कैंसर होने से भी रोकती है जैसे :

अंडाशय कैंसर में 40% की कमी.

गर्भाशय कैंसर में 50% की कमी.

बड़ी आंत के कैंसर में भी कमी.

निरोधक गोली सेवन समाप्त करने पर भी इस का प्रभाव 15 वर्षों तक बना रहता है और कैंसर बनने पर रोकथाम करती हैं.

गर्भनिरोधक गोली सेवन के पूर्व क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

यह गोली शरीर में रक्त के जमने की प्रक्रिया पर प्रभाव डालती है और पैरों में खून के जमने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए जिन महिलाओं में हृदय रोग, मोटापा, हार्ट अटैक या अधिक रक्तचाप जैसी बीमारी हो या इन की संभावना हो तो उन्हें गर्भनिरोधक गोली का सेवन नहीं करना चाहिए. आमलोगों में एवं हमारे समाज में गर्भनिरोधक गोली के विषय में कुछ गलत धारणाएं हैं, जिन का निवारण अत्यंत आवश्यक है. मसलन :

वजन का बढ़ना.

बांझपन और अपंग बच्चों का जन्म होना या एबार्शन हो जाना.

गोलियों का सेवन करने पर, बाद में गर्भाधान का कभी न हो पाना.

संभोग क्रिया में रुझान व इच्छा का कम होना.

मिनी पिल नवजात शिशु को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को गर्भाधारण से बचाती है. इस के सेवन से नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, साथ ही महिला के स्तनों में बनने वाली दूध की मात्रा में भी कोई कमी नहीं होती है.

इन सभी बातों पर ध्यान दे कर जीवन में खुशहाली के साथसाथ कई बीमारियों से बचाव भी किया जा सकता है.   

– डा. मीता वर्मा

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