लेखक- सुजय कुमार
लेकिन मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…
‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’
‘‘ऊं…हूं…’’
‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’
‘‘सत्या प्लीज…’’
‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’
‘‘नहीं जानती.’’
‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’
‘‘मुझे एक छाता चाहिए सत्या. धूप में, बारिश में, बाहर जाते समय काफी तकलीफ होती है. ला दोगे न?’’
‘‘बातों का रुख मत बदलो. छाता दिला दूं तो ‘आई लव यू’ कह दोगी न?’’
मोहिनी के जिद्दी स्वभाव के बारे में सोच कर सत्या तिलमिला उठा पर वह दिल के हाथों मजबूर था. मोहिनी के बिना वह अपनी जिंदगी सोच ही नहीं सकता था. लगा, मोहिनी न मिली तो दिल के टुकड़ेटुकड़े हो जाएंगे.
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सत्या ने पहली बार जब मोहिनी को देखा तो उसे दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट महसूस हुई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सीधी नाक, ठुड्डी पर छोटा सा तिल, नमी लिए सुर्ख गुलाबी होंठ, लगा मोहिनी की खूबसूरती का बयान करने के लिए उस के पास शब्दों की कमी है.
मोहिनी से पहली मुलाकात सत्या की किसी इंटरव्यू देने के दौरान हुई थी. मिक्सी कंपनी में सेल्समैन व सेल्स गर्ल की आवश्यकता थी. वहां दोनों को नौकरी नहीं मिली थी.
कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी कंपनी के साक्षात्कार के समय उस ने दोबारा मोहिनी को देखा था. गुलाबी सलवार कमीज में वह गजब की लग रही थी. कहीं यह वो तो नहीं? ओफ…वही तो है. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.
मोहिनी ने भी उसे देखा.
‘बेस्ट आफ लक,’ सत्या ने कहा.
उस की आंखें चमक उठीं. गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे.
‘थैंक यू,’ मोहिनी के होंठों से ये दो शब्द फूल बन कर गिरे थे.
यद्यपि वहां की नौैकरी को वह खुद न पा सका पर मोहिनी पा गई. माइक्रोओवन बेचने वाली कंपनी… प्रदर्शनी में जा कर लोगों को ओवन की खूबियों से परिचित करवा कर उन्हें ओवन खरीदने के लिए प्रेरित करने का काम था.
सत्या ने नौकरी मिलने की खुशी में मोहिनी को आइसक्रीम पार्टी दे डाली. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. छुट्टी के दिन व काम पूरा करने के बाद मोहिनी की शाम सत्या के साथ गुजरती. सत्या का हंसमुख चेहरा, मजाकिया बातें, दिल खोल कर हंसने का अंदाज मोहिनी को भा गया था. वह उस से सट कर चलती, उस की बातों में रस लेती. एक बार सिनेमाहाल में परदे पर रोमांस दृश्य देख विचलित हो कर अंधेरे में सत्या ने झट मोहिनी का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर अपने जलतेतड़पते होंठ रख दिए थे.
यह प्यार नहीं तो और क्या है? हां, यही प्यार है. सत्या के दिल ने कहा तो फिर ‘आई लव यू’ कहने में क्या हर्ज है?
पिछली बार मोहिनी के जन्म-दिन पर सत्या चाहता था कि वह अपने प्यार का इजहार करे. जन्मदिन पर मोहिनी ने उस से सूट मांगा. 500 रुपए का एक सूट उस ने दस दुकानों पर देखने के बाद पसंद किया था पर खरीदने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे क्योंकि प्रथम श्रेणी में स्नातक होने के बाद भी वह बेरोजगार था.
घर के बड़े ट्रंक में एक पान डब्बी पड़ी थी. पिताजी की चांदी की… पुरानी…भीतर रह कर काली पड़ गई थी. मां को भनक तक लगे बिना सत्या ने चालाकी से उसे बेच दिया और मोहिनी के लिए सूट खरीदा.
आसमानी रंग के शिफान कपड़े पर कढ़ाई की गई थी. सुंदर बेलबूटे के साथ आगे की तरफ पंख फैलाया मोर. सत्या को भरोसा था कि इस उपहार को देख कर मोर की तरह मोहिनी का मन मयूर भी नाच उठेगा. उस से लिपट कर वह थैंक्यू कहेगी और ‘आई लव यू’ कह देगी. इन शब्दों को सुनने के लिए उस के कान कितने बेकरार थे पर उस के उपहार को देख कर मोहिनी के चेहरे पर कड़वाहट व झुंझलाहट के भाव उभरे थे.
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‘यह क्या सत्या? इतना घटिया कपड़ा. और देखो तो…कितना पतला है, नाखून लगते ही फट जाएगा. यह देखो,’ कहते हुए उस ने अपने नाखून उस में गड़ाए और जोर दे कर खींचा तो कपड़ा फट गया. सत्या को लगा था यह कपड़ा नहीं, उस के पिताजी की पान डब्बी व मां के सेंटिमेंट दोनों तारतार हो गए हैं.
‘कितने का है?’ मोहिनी ने पूछा.
‘तुम्हें इस से क्या?’
‘रुपए कहां से मिले?’
‘बैंक से निकाले,’ सत्या ने सफाई से झूठ बोल दिया.
और इस बार छाता…उस ने मोलभाव किया. अपनेआप खुलने व बंद होने वाला छाता 2 सौ रुपए का था. दोस्तों से रुपए मिले नहीं. घर में जो कुछ ढंग की चीज नजर आई मां की आंखें बचा कर उसे बेच कर सिनेमा, ड्रामा, होटल के खर्चे में वह पहले से पैसे फूंक चुका था.
काश, एक नौकरी मिल गई होती. इस समय वह कितना खुश होता. मोहिनी के मांगने के पहले उस की आवश्यकताओं की वस्तुओं का अंबार लगा देता. चमचमाते जूते पर धूल न जमे, कपड़ों की क्रीज न बिगड़े, एक अदद सी नौकरी, बस, उसे और क्या चाहिए. पर वह तो मिल नहीं रही थी.
नौकरी तो दूर की बात, अब उस की प्रेमिका, उस की जिंदगी मोहिनी एक छाता मांग रही है. क्या करे? अचानक उसे रवींद्र का ध्यान आया जो बचपन में उस का सहपाठी था. बड़ा होने पर वह अपने पिता के साथ उन के प्रेस में काम करने लगा. बाद में पिता के सहयोग से उस ने प्रिंटिंग इंक बनाने की फैक्टरी लगा ली थी. बस, दिनरात उसी फैक्टरी में कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता था.
एक दोस्त से पैसा मांगना सत्या को बुरा तो लग रहा था पर क्या करे दिल के हाथों मजबूर जो था.
‘‘उधार पैसे मांग रहे हो पर कैसे चुकाओगे? एक काम करो. ग्राइंडिंग मशीन के लिए आजकल मेरे पास कारीगर नहीं है. 10 दिन काम कर लो, 200 रुपए मिलेंगे. साथ ही कुछ सीख भी लोगे.’’
इंक बनाने के कारखाने में ग्राइंडिंग मशीन पर काम करने की बात सोच कर ही सत्या को घिन आने लगी थी. पर क्या करे? 200 रुपए तो चाहिए. किसी भी हाल में…और कोई चारा भी तो नहीं.
10 दिन के लिए वह जीजान से जुट गया. मशीनों की गड़गड़ाहट… पसीने से तरबतर…मैलेकुचैले कपड़े… थका देने वाली मेहनत, उस ने सबकुछ बरदाश्त किया. 10वें दिन उस ने छाता खरीदा. मोलभाव कर के उस ने 150 रुपए में ही उसे खरीद लिया. 50 रुपए बचे हैं, मोहिनी को ट्रीट भी दूंगा, उस की मनपसंद आइसक्रीम…उस ने सोचा.
तालाब के किनारे बना रेस्तरां. खुले में बैठे थे मोहिनी और सत्या. वह अपलक अपने प्यार को देख रहा था. हवा के झोंके मोहिनी की लटों को उलझा देते और वह उंगलियों से उन्हें संवार लेती. मोहिनी के चेहरे की खुशी, उस की सुंदरता का जादू, वातावरण की मादकता को बढ़ाए जा रही थी. सत्या का मन उसे भींच कर अपनी अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर लेने का था, किंतु बरबस उस ने अपनी कामनाओं को काबू में कर रखा था.
कटलेट…फिर मोहिनी की मनपसंद आइसक्रीम…सत्या ने बैग से छाता निकाला. वह मोहिनी की आंखों में चमक व चेहरे पर खुशी देखने के लिए लालायित था.
‘‘सत्या, यह क्या है?’’ मोहिनी ने पूछा.
‘‘तुम ने एक छाता मांगा था न…यह कंचन काया धूप में सांवली न पड़ जाए, बारिश में न भीगे, इसीलिए लाया हूं.’’ मोहिनी ने बटन दबाया. छाता खुला तो उस का चेहरा ढक गया. छाते के बारीक कपड़े से रोशनी छन कर भीतर आई.
‘‘छी…तुम्हें तो कुछ खरीदने की तमीज ही नहीं सत्या. देखो तो कितनी घटिया क्वालिटी का छाता है. इसे ले कर मैं कहीं जाऊं तो चार लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? छाते को झल्लाहट के साथ बंद कर के पूरे वेग से उस ने तालाब की ओर उसे फेंका. छाता नाव से टकरा कर पानी में डूब गया.’’
सत्या उसे भौंचक हो कर देखता रहा. क्षण भर…वह खड़ा हुआ, कुरसी ढकेल कर दौड़ पड़ा. सीढि़यां उतर कर नाव के समीप गया. नाव को हटा कर उस ने पानी में हाथ डाल कर टटोला. छाता पूरी तरह डूब गया था. हाथपैर से टटोल कर थोड़ी देर की मशक्कत के बाद वह उसे ले आया. उस के चेहरे पर क्रोध व निराशा पसरी हुई थी.
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‘‘मोहिनी, इस छाते को खरीदने के लिए 10 दिन…पूरे 10 दिन मैं ने खूनपसीना एक किया है, हाथपैर गंदे किए हैं, इंक फैक्टरी में काम सीखा है. सोच रहा था कुछ दिनों में रुपए का जुगाड़ कर के क्यों न एक छोटी सी इंक फैक्टरी मैं भी खोल लूं. कितने अरमानों से इसे खरीद कर लाया था. तुम ने मेरी मेहनत को, मेरे अरमानों को बेकार समझ कर फेंक दिया. आई एम सौरी…वेरीवेरी सौरी मोहिनी…जिसे पैसों का महत्त्व नहीं मालूम ऐसी मूर्ख लड़की को मैं ने चाहा. लानत है मुझ पर…गुड बाय…’’
‘‘एक मिनट सत्या,’’ मोहिनी ने कहा.
‘‘क्या है?’’ सत्या ने मुड़ कर पूछा तो उस की आवाज में कड़वाहट थी.
‘‘तुम ने सूट खरीद कर दिया था, उसे भी मैं ने फाड़ दिया था, तब तो तुम ने कुछ कहा नहीं. क्यों?’’
‘‘बात यह है कि…’’
‘‘…कि वह तुम्हारी मेहनत के पैसों से खरीदा हुआ नहीं था. मैं तुम्हारी मां से मिली थी. तुम मेहनत से डरते हो, यह मैं ने उन की बातों से जाना. 500 रुपए के सूट को मैं ने फाड़ा तब तो तुम ने कुछ नहीं कहा और अब इस छाते के लिए कीचड़ में भी उतर गए, जानते हो क्यों? क्योंकि यह तुम्हारी मेहनत की कमाई का है.’’
‘‘मैं इसी सत्या को देखना चाहती थी कि जो मेहनत से जी न चुराए, किसी भी काम को घटिया न समझे, मेहनत कर के कमाए और मेहनत की खाए?’’
मोहिनी उस के समीप गई. उस के हाथों से उस छाते को लिया और बोली, ‘‘सत्या, यह मेरे जीवन का एक कीमती तोहफा है. इस के सामने बाकी सब फीके हैं. अब तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘उस के समीप जा कर मोहिनी ने उसे गले लगाया.’’
‘‘उफ्, मेरे हाथपैर कीचड़ से सने हैं, मोहिनी.’’
‘‘कोई बात नहीं. एक चुंबन दोगे?’’
‘‘क्या?’’
‘‘आई लव यू सत्या.’’
सत्या के दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट का एहसास उसी तरह से हो रहा था जैसे उस ने पहली बार मोहिनी को देखने पर अपने दिल में महसूस किया था.
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