नेताओं की बीवियों और बच्चों को अब दिल्ली में मिले आलीशान मकान स्मारक के नाम से नहीं मिलेंगे. मोदी सरकार ने फैसला किया है कि मंत्री पद पर रहे लोगों को मृत्यु या पद छोड़ने के बाद बड़ा घर छोड़ना पड़ेगा. बहुत से नेताओं ने दिल्ली के आलीशान बंगलों पर कब्जा कर रखा है और कुछ में अब तीसरी पीढ़ी रह रही है. अभी हाल ही में चौधरी चरण सिंह के पुत्र, पूर्व मंत्री अजीत सिंह से मकान खाली करवाया गया तो जम कर हल्ला हुआ पर सरकार अड़ी रही.

पद पर काम करने के लिए दिया गया मकान तब एकदम खाली हो जाना चाहिए जब व्यक्ति पद पर न रहे. असल में बुद्धिमानी तो यही है कि पदासीन व्यक्ति की पत्नी नए घर में जाने से इनकार कर दे क्योंकि नेताओं के पद कब छिन जाएं पता नहीं. उसे तो पति से कहना चाहिए कि चाहे छोटा हो, अपना या किराए का मकान लो, जो पद जाने के बाद खाली न करना पड़े.

स्मारक के नाम पर बड़े मकान का आनंद पीढि़यों भोगना तो और गलत है. मायावती ने अच्छा किया कि उन्होंने जैसेतैसे दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में अपना मकान पार्टी के चंदे से बनवा कर उसे गैरसरकारी स्मारक का नाम दे दिया और अब जी चाहे तो वे वहां रह सकती हैं. सभी को यही करना चाहिए.

लेकिन सवाल यह है कि मोदी सरकार धर्म के नाम पर नित बन रहे स्मारकों को क्या रोक सकती है? वे भी तो जनता की जमीन पर अतिक्रमण हैं. खेती की जमीन को उद्योग या रिहायशी जमीन में बदलवाना हो तो हजार अड़चनें हैं, धर्मस्थल तो रातोंरात बन जाएगा. फिर लाउडस्पीकर बजाने लगेंगे, दुकानें खुल जाएंगी और आसपास वालों का जीना मुहाल हो जाएगा. पर धर्म का नाम आते ही पार्टियों को सांप सूंघ जाएगा. सरकारी जमीन यदि धर्म के नाम पर निछावर हो सकती है तो स्मारकों को क्यों छेड़ा जाए, पूछा जा सकता है.

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